
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर आरएसएस और बीजेपी पर तीखा हमला किया है। मुद्दा वही पुराना है लेकिन बयान नया और तीखा है।
कौन बोला- धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाना चाहिए संविधान से
उन्होंने X पर लिखा, आरएसएस का नक़ाब फिर से उतर गया। इन्हें संविधान चुभता है क्योंकि उसमें समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात की जाती है।
यानि अब संविधान को लेकर डिबेट “कॉन्स्टिट्यूशनल लॉ” से निकलकर “आइडियोलॉजिकल WWE” बन चुकी है।
संविधान नहीं, इन्हें मनुस्मृति चाहिए!
राहुल यहीं नहीं रुके, उन्होंने सीधे मनुस्मृति का नाम लेकर हमला बोला, जो सामाजिक न्याय पर केंद्रित राजनीति के लिए बड़े प्रतीकात्मक मायने रखता है। आरएसएस-बीजेपी को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और ग़रीबों के अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा ग़ुलाम बनाना चाहते हैं।
यानी बयान में सिर्फ विरोध नहीं, एक डायरेक्ट वैचारिक टकराव है।
विवाद की जड़: धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द
इस पूरी सियासी लड़ाई की शुरुआत हुई आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के बयान से, जिसमें उन्होंने कहा था, आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार होना चाहिए।
अब ये बहस अदालत में नहीं, लोकसभा और ट्विटर के कोर्ट में लड़ी जा रही है।
हम संविधान की रक्षा आख़िरी सांस तक करेंगे – राहुल गांधी का संकल्प
राहुल गांधी ने कहा कि ये लोग संविधान जैसा ताक़तवर हथियार उनसे छीनना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस और हर देशभक्त भारतीय ऐसा नहीं होने देगा। आरएसएस ये सपना देखना बंद करे। संविधान की रक्षा के लिए हम आख़िरी दम तक लड़ेंगे।
ये बयान वैसा ही है जैसे कोई सुपरहीरो कहे – I will protect the Constitution till my last breath!
सियासत गरम, संविधान फिर चर्चा में
एक तरफ आरएसएस संविधान की “सजावट” पर सवाल उठा रहा है, दूसरी तरफ कांग्रेस कह रही है – ये सजावट नहीं, आत्मा है!
संविधान की प्रस्तावना बनाम राजनीतिक प्रस्ताव
समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों की बहस अब सिर्फ प्रस्तावना की लाइनें नहीं, बल्कि राजनीतिक लाइनें खींच रही हैं।
देखना ये होगा कि इस बार कौन जीतेगा — मनुस्मृति की सोच या संविधान की आत्मा?